गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

सुनहरी धूल

सुनहरी धूल 

हुई सुबह, आँखे मसली, आया नया सवेरा 
गाँव देखने मैं चली जब मिला वक़्त सुनहरा 
चिड़िया चहकी, सूरज चमका, दमका दिया कोना कोना 
सुंदर जहान, सुंदर आसमान, दिन जैसे सोना 

हवा चली, इठलाई बलखाई, फसले शरमाई
आगे बढ़ कर झूम गई सारी अमराई 
बढ़ती गई..... झूमती गई 
संग पकड़कर  धूल की कलाई 

धूल से बचती ,आँखे भीचे, खड़ी हो गई मैं 
कोसने लगी धूल को, जो मुझे परेशां कर रही थी 
तब ना जाने कब, हवा कान में धीरे से कुछ कह गई 
धूल से बचना, धूप से बचना, पर यह तो है "सुनहरी धूल" 

वह धूल, जो मिट्टी है, जो माता है 
जिसके गोद में यह फसले बढ़ती है 
जो सूरज के किरणो तक पहुचती है 
सुनहरी किरणो की दाता है यह "सुनहरी धूल"

सोने सी चमकती, दमकती इधर उधर भटकती 
हवा की साथी, जब छू जाती किसी कृषक को 
तब बन जाती है यह धूल … सोने सी कीमती "सुनहरी धूल"
सुन कर यह.. नतमस्तक हो गई मै 
आखिर बाँहों में बटोरनी थी.… "सुनहरी धूल" 
  

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

bharosa ....??

विश्वास.....??


भरोसे ने तोड़ी कई तक़दीरें,
एक तक़दीर मेरी भी है.
कहा था. जोड़ कर रखूँगा तुम्हे 
पर ये षड़यत्र तेरी है..... 

जब तुम अपना वादा ना निभा सके 
तो क्यों कहा था मुझे 
ना कहते तुम, ना रहते तुम 
ना रखते मुझपर यकीं 

"विश्वास" भी शायद तुम्हे ही कहते है ना 
मत रखो तुम नाम अनेक 
बस दिल से हो जाओ नेक 
तो शायद आज यूँ ना तुम्हे दोष देते 

 तुम्हारे ही कारण सीता ने दी अग्नि परीक्षा 
 रिश्तो के.…… रावण तुम हो 
दी तो मैंने भी परीक्षा 
पर पास ना किया तुमने मुझे 
क्यों करते ?  परीक्षा के सूत्रधार तुम हो ना 

मै कहती हूँ कि तुम आखिर हो क्यू 
प्यार का दूसरा नाम तुम हो ना 
मेरे लिए नहीं …… नहीं हो तुम 
प्यार की डोर …… 

एक कच्चा धागा हो तुम जो 
टूट जाते हो, रिश्ते बिखेर जाते हो 
जीवन अंधेर बना जाते हो
तक़दीरें बदल जाते हो ....... 








मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

मजदूर


 मजदूर


हम है मजदूर , जिसके सर पर छत नहीं 

हम बनाते है आपके घर,पर हमारा ही घर नहीं 
  
घर जिसका ख्वाब हर कोई देखता है 

हमने भी देखा है, पर शायद आपके लिए  

हमने बनाया है ताजमहल, ईमारत और आपके घर 

इसीलिए हम कहलाते है "कारीगर"



जितनी चाहे उतनी लम्बी ईमारत बनवा लो हमसे 

पर हमे तो  फुटपाथ पर ही रहना है 

आते जाते दुत्कार, दिहाड़ी ने हमे ईंट की  तरह कठोर बनाया दिया है 

इसीलिए तो हम इंसान नहीं, ईमारत बनाते है 

पर हमारा भी सपना है एक दिन 

अपने हाथों से बनाई करोड़ों की ईमारत में रहने का कोना मिल जाये 

मिल जाये वह घर जिसे हम वर्षो से आपके लिए सजाते आये है 

पर यह मुमकिन नहीं ........  आंसू भरे आँखों से आज 

एक परिवार मेरे बनाये घर में देखा

और मेरा परिवार फुटपाथ पर रहते देखा 

आंसू तो रुक ना सके पर यह ख़ुशी जरुर मिली की 

मेरे बनाये घर में है एक हसता - खेलता परिवार 

एक घर , एक छत .... एक घर , एक छत


रविवार, 24 नवंबर 2013

sardi ... aai


सर्दी 


सर्दी आई ठंड हवा के झोंके साथ लाई 
कुहरे ने बतलाया था कल ही, कि आ जाओगे तुम जल्द ही 
आ ही गए हो तुम अब , तो बतला दूँ तुमको अब 
ना ज्यादा सताना हमें तुम, बस जरा सी शरारत करना तुम 
हमने तो कर ली है, तुमसे बचने की  तैयारी 
फिर भी दिल करना चाहता है, तुमसे यारी 

रजाई,स्वेटर, अलाव सबके सब है हमारे हथियार 
पर पता है, ना झेल पाएंगे तुम्हे यार 
ओले, बर्फ के गोले, गिराना जरुर तुम 
स्नोमैन बनाने के लिए, उत्सुक है हम सब 
फिर कहे देती हूँ तुम्हे, ज्यादा ना सताना हमें 
जरा सा कुहरा, जरा सी ठंड से भर देना आगाज़ को तुम 
स्वागत हैं तुम्हारा, "सर्दी जी " ना ज्यादा ठिठुराना  हमें तुम 


kya hai yah "विश्वास"

विश्वास  की व्याख्या 

जब कभी भी मैं सोचती हुँ की "विश्वास" क्या है ? क्या ये सिर्फ साढ़े तीन अक्षर का कोई शब्द है या फिर इसमें कोई अथाह अर्थ छुपा हुआ है. शायद इसका अर्थ बहुत कठिन  है तभी लोग  "विश्वास" को समझ नहीं पाते और अपने जीवन से प्यार गवां देते है. कहते है कमर्शियल बिज़नेस उधारी पर चलता है और उधारी के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है  "विश्वास". जब यह  "विश्वास" ख़त्म उधारी सिस्टम ख़त्म। बहरहाल बिज़नेस में तो नुक्सान सहा जा सकता है पर क्या असल जिंदगी बिना  "विश्वास" के उधारी देने पर चल सकती है क्या ?
उत्तर है नहीं। जब कोई स्त्री किसी पुरुष के जीवन में आती है, तो पुरुष और स्त्री का एक दूसरे पर बराबर का हक़ होता है. पर स्त्री को मायके से विदा करके लाने वाले पुरुष को वह एक उधार लगती है. जिसे ना चुकाने पर भी कोई जुर्माना नहीं देना पड़ता।
 यहाँ से शुरू होता है  "विश्वास" का खेल अगर दोनों ने अर्थ समझा तो ठीक नहीं तो सब नष्ट हो जाता है. यहाँ पर  सबसे अधिक विनाशकारी खेल खेलता है "शक़" …… अगर इससे समय रहते बच गए तो आपकी खुशनसीबी नहीं तो........ एक दूसरे पर रहने वाला हक़ शक़ बनने में देर नहीं करता। ऐसा नहीं है कि  "विश्वास" सिर्फ पति पत्नी के बीच चाहिए परन्तु हर एक रिश्ता अगर जड़ से जुड़ा होता है तो उसके पीछे की शक्ति है  "विश्वास". अर्थात  "विश्वास" एक शातिर खिलाडी है जिससे हारे तो सब नष्ट , और अगर जीत गए तो  स्वर्ग पर जीत. तो यह आप पर निर्भर है की आप जीतना चाहते है या हारना ……। 

शनिवार, 9 नवंबर 2013


मन की  व्यथा 

मन  क्यों है उदास, ना जाने है किसकी आस

बादल घुमड़कर बढ़ा रहे है धरती की प्यास, ना जाने कब होगी यह बरसात 

मंडराते भौरों से कलियों ने पूछी एक बात, कब बनूँगी मैं फूलों की रास 

मन  क्यों है उदास, ना जाने है किसकी आस

बहते झरनो से पूछी चट्टानों ने एक बात, कब लौट आओगे मेरे पास 

चंदा मामा की कहानी सुनकर बालक ने पूछी एक बात, कब आयेगा चाँद मेरे पास 

मन  क्यों है उदास, ना जाने है किसकी आस

काश एक टूटता तारा होता मेरे पास , हर इच्छा पूरी हो जाती आज 

पर शायद सुख दुःख, प्यास, आस है जिंदगी का नाम 

काश यह समझकर न रहूँ मै उदास, पर फिर भी दिल कहता है मुझे है किसी की आस 

 मन  क्यों है उदास, ना जाने है किसकी आस

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

6 th class me likhi hue meri kahaani....


हाथी मेरे साथी 


एक गाँव था केतकी पुर।  वहां रामू नाम का एक गरीब  लकडहारा था उसके परिवार में चार सदस्य थे. रामू, उसकी पत्नी, बेटा सोनू, बेटी केसर।  पत्नी का असमय ही निधन हो गया था. जिससे उसके घर में हमेशा शोक ही रहता है. दोनों बच्चे रामू के साथ लकड़ी बेचने के काम में साथ देते थे. एक दिन रामू जंगल से लकड़िया काट  कर आ रहा था  तो देखा की एक हाथी के पैरों में बेड़िया पड़ी थी. उसने उसकी बेड़िया खोल दी और हाथी अपना सूंड हिलाकर धन्यवाद करते हुआ चला गया.

 एक दिन रामू ने अधिक लकड़िया काट ली  पर उसे घर ना ले जा सका. साथ ही बारिश भी शुरू होने वाली थी. उसे चिंता सताने लगी की लकड़िया भीग जाएगी। उसी समय वह हाथी आया और लकड़ी के गट्ठर को उठाकर घर ले आया. अब वह रोज उसी तरह लकड़िया घर ले आया करता था. रामू को हाथी से  थोड़े ही दिनों में काफी प्रेम हो गया. रामू रोजाना उसके लिए मीठे मीठे गन्ने लाता था. रामू और हाथी में काफी मित्रता हो गयी। एक दिन राजा की नजर उस हाथी पर गयी और उसने उसे शिकारियों से पकड़वा लिया जिससे रामू को ऐसा सदमा लगा की उसे लकवा मार गया. हाथी की याद  में  उसकी सेहत दिन ब दिन गिरती जा रही थी. एक दिन रामू ने अपने बच्चों सोनू और केसर को बुलाया और कहा की जाओ और किसी तरह उसे  छुड़ाकर लाओ. दोनों ने कमर कस ली. उन्होंने राजा की प्रिय पछी कुकु को आजाद कर दिया। जिससे राजा गुस्से से लाल पीला हो गया. उसने सोनू और केसर को पकड़वा लिया। राजा ने जब इस गुस्ताखी का कारण पूछा तो सोनू ने कहा की " महाराज आपके प्रिय पछी को उड़ने पर आप इतना गुस्सा हो गए तब सोचिये कि  आपने उस हाथी को पकड़वा लिया तो मेरे पिताजी को कैसा लगा होगा? " राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने हाथी को आजाद कर दिया फिर रामू का इलाज करवाया और खाने पीने का उचित प्रबन्ध कर दिया।