समुंदर
समुंदर, तुझे देखती हूँ
तो बहुत प्यार आता है
आखिर दिल की अनकही बाते
तुझसे ही तो साझा कर पाती हूँ
तू ही तो एक है जो
मझे सुनता है, मुझे समझता है
मुझे बताता है, साथ निभाता है
दर्द-ए -दिल की दवा है तू
अपने लहरो को, मेरे पैरो से छूकर
मुझे शांत कराता है.
मोती जैसी बूंदो को उड़ाकर
जागृत करता है
अथाह फैला है तू पर फिर भी
कितना शांत है,
कितना भोला है
कितनो को पनाह दी है
तेरी मदमस्त लहरों को
देख कर दिल का तूफान शांत हो जाता है
इक तू ही तो है, जिसके साथ
मै खुद को ढूंढ पाती हूँ
इक तेरे आगोश में ही
खुद को महफूज पाती हू
क्यों है इतनी दिल्लगी तुमसे
मै समझ नही पाती हू
इस जीवित समाज को छोड़ कर
खुद को ढूंढने, रोने तेरे पास आती हू
तेरे रेतीले वस्त्र को
अश्रु से भीगा जाती हू
तू मेरे रोने का कंधा है,
इस जीवित समाज से तो
तू लाख गुना अच्छा है
जो सिर्फ रुलाना जानती है
क्यूँ वो तुझसे कुछ नहीं सीखता
मुझपर लुटाई तेरी हर 'बूँद'
मुझे दिया गया तेरा हर समय
मुझपर एक एहसान है
एक सच्चे दोस्त की पहचान है
आखिर दिल की अनकही बाते
तुझसे ही तो साझा कर पाती हूँ.……………