'सृजन'
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शुक्रवार, 29 जनवरी 2016
शायरी
आज इन बलखाती हवाओं ने मौसम का रुख ही बदल दिया है
क्या पता था हमें, हम तो मौसम से ही मोहब्बत कर बैठे
सपनों में जो नजर आता है वह हमेशा सच होता
तो शायद आज हम आपसे यूँ दूर ना हो जाते
दुख दिल में छिपाकर हम जी रहे है,
दुनिया तो बेवजह ही हमे दिलखुश कहती है
तुम्हारी परछाई को भी हम पहचान सकते है हम
वह तो हमारी बदनसीबी है कि आज उसे भी देख नही सकते हम
ख्याल भी अजीब सी भूल भूलैया है,
एक पल तुम्हारे पास लाती है और अगले ही क्षण तुमसे दूर कर जाती है
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