कई दिनों से कुछ लिखने की इच्छा थी
एहसासो को पन्ने पर उकेरने की इच्छा थी
सोचा, लिखे भी तो क्या लिखे
जज्बातों को बयां करे ऐसे कोई शब्द भी नहीं
विचारों में गुमशुदा, ख़यालो में बेखबर
चले जा रहे थे हम
ना तो कोई संगी था ना तो कोई साथी था
एक रहनुमा की चाहत में हम तो चले जा रहे थे
अंत ना थी चाह जहाँ, अंत ना थी राह जहाँ
इन दूरियों को मिटाने की कोशिश किये जा रहे थे
वादियों के ख़ामोशी के साथ
रास्तों से अनजान हम मंजिल ढूंढे जा रहे थे
यादों के पुलिंदे को हवा देकर
वर्तमान को जिए जा रहे थे
बरखा के बूंदो को पीकर
तपिश कम किये जा रहे थे
पर्वतों की छाया में आसमां को खोजते रहे हम
नदियों की धारा में समुन्दर को खोजते रहे हम
मंजिलो की चाह में रास्तो को नापते रहे हम
समां की ख़ामोशी में शब्द ढूंढते रहे हम
बेखबरी में, इस अनजान रास्तों पर चलते रहे हम
ढूंढ़ते रहे हम शब्द और गजल बनती चली गयी
शब्द तो एहसास बयां ना कर पाये
पर एहसास ही खुद शब्द बन कर पन्ने पर उतर आये...
इमेज स्तोत्र : १