रविवार, 24 नवंबर 2013

kya hai yah "विश्वास"

विश्वास  की व्याख्या 

जब कभी भी मैं सोचती हुँ की "विश्वास" क्या है ? क्या ये सिर्फ साढ़े तीन अक्षर का कोई शब्द है या फिर इसमें कोई अथाह अर्थ छुपा हुआ है. शायद इसका अर्थ बहुत कठिन  है तभी लोग  "विश्वास" को समझ नहीं पाते और अपने जीवन से प्यार गवां देते है. कहते है कमर्शियल बिज़नेस उधारी पर चलता है और उधारी के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है  "विश्वास". जब यह  "विश्वास" ख़त्म उधारी सिस्टम ख़त्म। बहरहाल बिज़नेस में तो नुक्सान सहा जा सकता है पर क्या असल जिंदगी बिना  "विश्वास" के उधारी देने पर चल सकती है क्या ?
उत्तर है नहीं। जब कोई स्त्री किसी पुरुष के जीवन में आती है, तो पुरुष और स्त्री का एक दूसरे पर बराबर का हक़ होता है. पर स्त्री को मायके से विदा करके लाने वाले पुरुष को वह एक उधार लगती है. जिसे ना चुकाने पर भी कोई जुर्माना नहीं देना पड़ता।
 यहाँ से शुरू होता है  "विश्वास" का खेल अगर दोनों ने अर्थ समझा तो ठीक नहीं तो सब नष्ट हो जाता है. यहाँ पर  सबसे अधिक विनाशकारी खेल खेलता है "शक़" …… अगर इससे समय रहते बच गए तो आपकी खुशनसीबी नहीं तो........ एक दूसरे पर रहने वाला हक़ शक़ बनने में देर नहीं करता। ऐसा नहीं है कि  "विश्वास" सिर्फ पति पत्नी के बीच चाहिए परन्तु हर एक रिश्ता अगर जड़ से जुड़ा होता है तो उसके पीछे की शक्ति है  "विश्वास". अर्थात  "विश्वास" एक शातिर खिलाडी है जिससे हारे तो सब नष्ट , और अगर जीत गए तो  स्वर्ग पर जीत. तो यह आप पर निर्भर है की आप जीतना चाहते है या हारना ……। 

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