बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

शायरी

         
        कहते है इश्क़ के राह पर कांटे बहुत है
          तुम अपने हाथो से कांटे निकलोगे  
    इस उम्मीद में हम हँस कर राह पार कर आये  




         ना माना हमने कि इश्क़ का कोई खुदा है 
     इबादत तो हमने तुम्हारी की, तू ही मेरा खुदा है 




         मौसम के मार से शज़र आज बदल गया 
   पर क्या मौसम है तुममे जिसने तुम्हे बदल दिया 




              बहते झरनों में भी एक प्यास है 
         तुम्हे पाने की मुझे अब भी एक आस है 
              वह तो बहकर भी प्यासा है 
       मुझे तो ठहर कर तुम्हे पाने की आशा है 
   

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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

कहानी

प्रेम की सीख 

रोज की तरह आज भी वह समय पर आया और सारे क्यूबिकल की डस्टिंग करने के बाद बास्केट में पीने के पानी की खाली बोतले रखने लगा. उसके बाद सारा दिन फाइल्स को यहाँ वहां रखना,  सभी को चाय - कॉफ़ी परोसना और साथ ही लोगों का भला- बुरा सुनना यह उसकी दिनचर्या थी. जहाँ हमारी दिनचर्या सुबह १० बजे शुरू होकर छह बजे ख़त्म होती थी वही उसकी दिनचर्या आठ बजे शुरू होकर रात के नौ बजे ख़त्म होती थी.



नाम तो उसका 'तेजप्रताप' था पर प्यार से सब उसे 'बाबू' बुलाते थे। उम्र से लगभग चालीस, दुबला - पतला, बाल अधपके हुऐ, शून्य सी चमकती आँखे, सफारी सूट पहने हुए वह दिन भर बिना थके स्फूर्ति से भरपूर यहाँ वहां भागते मिल जायेगा। जैसा की वह ऑफिस बॉय था, तो यह अंदाजा लगाया जा सकता था की उसकी तनख्वाह भी ज्यादा ना होगी। पर वह काम तो इस तरह करता था जैसे उसे अपने काम से बहुत ज्यादा प्यार हो। कभी- कभी मै यह सोचती थी कि मेरी तन्खवाह इससे ज्यादा होगी, इससे ज्यादा आरामदायक काम है मेरा,  पर फिर भी मैँ अपने काम को मन लगा कर नहीं कर पाती।



बाबू अपने काम के प्रति काफी जिम्मेदार था, लोगों की खुशामद करना, अपनी गलती पर तुरंत माफ़ी मांग लेना जैसे अच्छे सेवक वाले कई गुण मौजूद थे उसमे। मै तो  हाल ही में कंपनी में ज्वाइन हुए थी पर सहकर्मियोँ ने बताया की इसे कई साल हो गए यहाँ ।

 उसके हसते चेहरे के पीछे मुझे एक प्रकार की पीड़ा नजर आती थी। मैंने कई बार अपने सहकर्मियों से बाबू के बारे में ज्यादा जानना चाहा पर सबने यही कहा हमे नहीं पता।

वैसे भी मुंबई के  इस आपाधापी भरे जीवन में जब इंसान को अपने सगे - संबंधियों से हाल चाल पूछने का समय नहीं रहता , तो यह कैसे उम्मीद की जा सकती है की वे एक अददे से चपरासी से उसका हाल चाल जानेंगे। शायद यही इस आधुनिक जीवन की सच्चाई है। दूर के लोगों को जोड़ने के चक्कर में बनाये गए यंत्रो ने करीब के लोगों को ही दूर कर दिया है। जहाँ पहले लोग एक- दूसरे के ड्योढ़ी पर बैठकर अपना सुख- दुःख बाटते थे वहां पर अब फ्लैट रुपी दरवाजे बंद मिलते है।

कुछ दरवाजे तो बाबू के जीवन में भी ध्वस्त दिखाई पड़ते थे। पर वह क्या थे ? क्यों मुझे बाबू के जीवन में कुछ दुःख दिखाई पड़ता था, जो उसके हसते और खुशामद करते चेहरे में कही धूमिल हो जाता था। मैंने कई बार चाहा उससे बाते करू पर बाकी सब इंसानो की तरह व्यस्तता आड़े आ जाती थी। पर मन ही मन सोचा था कि बाबू से बात जरूर करुँगी।

इस तरह कई दिन बीत गए, जैसे प्रकृति अपने निर्धारित समयानुसार काम करती है उसी तरह हम भी समयानुसार काम में जुटे रहते है। बाबू के बारे में कुछ खास जानकारी तो नहीं मिली पर पता चला था की हर महीने में यह ओवरटाइम करके तीन दिन की छुट्टी जरूर लेता था और कभी किसी को नहीं बताता था की यह कहाँ जाता था ?  वैसे भी किसी को इसका उत्तर जानने में कोई रूचि भी नहीं थी।

एक दिन कुछ काम के सिलसिले में ऑफिस जल्दी जाना हुआ, देखा तो बाबू अपने काम में जुटा था।  मुझे देखकर सलामी दी और फिर काम में जुट गया।  कुछ सोचकर  मैंने उसे बुलाया और पूछा, '' बाबू तुम कहा से हो?'' उसने सरलता से जवाब दिया 'जी, मैडम हरियाणा से। ''

'यहाँ कब अाये। ' मैंने पूछा

'मैडम यहाँ तो काम करते - करते पूरी जवानी बीत गयी है। '' मुस्कुराकर उसने मुझे उत्तर दिया

'बाबू मैंने यहाँ कई लोगो से तुम्हारे बारे में पूछा, पर सबने यही कहा कि उन्हें तुम्हारे बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता। ''

'मैडम, यहाँ लोगों को अपने बारे में जानने की फुर्सत नहीं है।  कोई मेरे बारे में क्यों पूछेगा?'' उसके जवाब में एक पीड़ा छुपी हुए थी।

 'यह तो जीवन का दस्तूर बन गया है अब बाबू। वैसे तुम कहा तक पढ़े हो और मुझे अनीता कहो मैडम नहीं।' मैंने उसे हसते हुए कहा ।

'मैडम ……माफ़ कीजिये अनीता जी मैंने गाँव से इंटर तक की पढाई की है, आगे पढ़ना चाहता था पर पैसे नहीं थी सो नहीं पढ़ पाया।'' पानी का बोतल भरते-भरते उसने कहा।

'अच्छा ! तुम्हारी शादी हुई  है?' मैंने पूछा

ये सुनते ही उसने दुःख भरे शब्दों में कहा  , ''हाँ ! मैडम ''

'और बच्चे'

''है मैडम एक लड़का और एक लड़की'' उसने कहा

मन में एक तूफ़ान गूंज रहा था हो ना हो इसके जीवन में कुछ तो तूफ़ान जरूर आया होगा।

''क्या हुआ बाबू ? तुम उदास क्यों हो गए?''

कुछ नहीं मैडम …… अनीता जी बस ऐसे ही'' उसके वाक्य में मुझे रहस्य दिख रहा था।

'क्या हुआ बाबू कुछ तकलीफ है क्या?' मैंने पूछा

'जी नहीं अनीता जी ! जीवन में कुछ ऐसे पड़ाव होते है जहाँ आप खुद को असहाय पाते हो और धीरे - धीरे उन तूफानों  से खुद को निकाल ही लेते है, ऐसा ही कुछ मेरी जिंदगी में भी हुआ है।  जिसने मुझे काफी हद तक तोड़ दिया था पर फिर मैंने खुद ही अपने को जोड़ने का भरसक प्रयास किया है।' यह कहते हुए उसका गला रुँध गया जैसे वह अपने आंसू को पीने को कोशिश कर रहा था। वह अपने आँसू  छुपाते हुए वह से चला गया।

मुझे अपने आप पर काफी गुस्सा आ रहा था की मैंने एक हसते हुए व्यक्ति के घाव को कुरेद दिया था। मैंने सोचा दौड़कर उससे माफ़ी माँग लू, पर तब तक वह तेजी से जा चुका था।  शायद अकेले में रोने के किये, अपने मोमरूपी गम को आँसू के लौ में पिघलाने के लिए।

दफ्तर में अब तक कोई नहीं आया था ।  जिस ताकीदी काम के लिए मै जल्दी आई थी उस काम को मै निपटा रही थी। कंप्यूटर पर उँगिलया चलने के साथ - साथ मन में एक व्यथा, उदासी ने जन्म ले लिया था।

कुछ देर में देखा बाबू पुनः मेरे तरफ आ रहा था पर इस बार वह थोड़ा बुझा था, आँखे लाल थी और अपना दुःख बाटने का संकेत था।

उसे देखते ही मैंने कहा 'बाबू, सुनो मुझे माफ....... ' मेरी बात पूरी होने से पहले ही उसने कहा 'कोई बात नही अनीता जी, कम - स - कम आपने मुझे बात करने की कोशिश तो की।  जब मैंने गौर से सोचा तो मुझे यह लगा की दुःख बाटने से ही काम होता है नाकि उसे हस कर छुपाने से। '

मै जवाब  देने के लिए कोई शब्द ढूंढ ही रही थी तब उसने कहा ' अनीता जी बचपन तो खेत, मोहल्ले और गलियों में गुजर गया, पढ़ने में काफी अच्छा था इसलिए इंटर तक पढाई पूरी की। आगे  पढ़ना चाहता था पर हैसियत नहीं थी। उसी दौरान हमारे गाँव में रहने वाली एक लड़की से मेरा प्यार हो गया था। हम दोनों के घर से इस रिश्ते को नामंजूरी थी, साथ ही गाँव के लोग भी हमारी जान के पीछे पड़े थे।  जैसे तैसे हम दोनों वहां से भाग निकले और यहाँ आ बसे।  धीरे - धीरे हम अपनी पिछली जिंदगी भूल कर आगे बढ़ने लगे, मेरी जॉब थी, हमारे  दो बच्चे हुए हम अपनी जिंदगी में काफी खुश थे।  एक दिन हम बाजार गए बच्चो के लिए मिठाइयाँ लेकर जैसे मुड़े हमने देखा एक बेतहाशा सा ट्रक हमारे ओर आ रहा है..... ' वह फिर शांत हो गया  इस बार उसकी पलके अश्रु के बाढ़ को रोक न सकी।

'.......... और उसने बाज़ार में मौजूद कई लोगों को अपने चपेट में  ले लिया इसमें से एक मेरी बीवी भी थी..... ' वातावरण में फिर एक चुप्पी छा गई।

मैंने  पास में मौजूद पानी का गिलास उसकी तरफ बढ़ाया पर उसने हाथ से उसे एक ओर कर दिया और आगे कहने लगा '…… जब मैंने उसे खून से लथपथ देखा, तो मुझे लगा यह एक जरूर कोई दुःस्वप्न है, पर दुर्भाग्य से यह सच था।  चारो तरफ अफरा-तफरी मची थी, इस बीच मैंने उसे अस्पताल पहुचाया। डॉक्टरों के इलाज से वह बच तो गई पर वह ..... वह अपनी पिछली जिंदगी को भूल चुकी है वह मुझे अपने बच्चो को भूल चुकी है। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए है.…।' यह कहकर वह चुप हो गया।


आज मुझे बाबू के आँखों में रुके हुए आँसू की सच्चाई पता चल गया था। उसने आगे कहना शुरू किया ,'' फिर भी मैंने हिम्मत नहीं  हारी है, मै महीने में तीन दिन की छुट्टी लेकर उन सारी जगहों पर उसे ले जाता हूँ, जहाँ हम उसकी इस हालत के पहले जाया करते थे, उससे फिर उसी तरह बाते करके उसे याद दिलाने की कोशिश करता हूँ ताकि उसे अपनी पिछली जिंदगी के बारे में कुछ याद आ जाये। …… '' आँखों के कोने से आँसू बह उठे थे और उसे पोछते हुए उसने आगे कहाँ शुरू किया '…… मेरे बच्चो को मै माँ-बाप दोनों का प्यार देता हूँ। उनकी परवरिश में कोई भी कमी नहीं छोड़ता।'

मेरे मन में विचारों के बादल का जमावड़ा हो गया, क्या कोई सच में किसी को इतना प्यार  कर सकता है।यहाँ तो हर दूसरे दिन अखबारों में प्यार को तार - तार करने वाली कई खबरे आती रहती है, पर बाबू ने तो प्यार की परिभाषा को ही बदल दिया है।

मैंने बाबू को पूछा,' क्या तुम उन्हें अब भी प्यार करते हो?'

'क्यों नहीं करूँगा अनीता जी, वह मेरा प्यार है। वो मुझे नहीं पहचानती पर मै तो उसे पहचानता हूँ, उसने अपना सारा जीवन मेरे नाम कर दिया है, अब शायद मेरी बारी है.…… .'  यह कहकर वह मुस्कुराया और वहाँ  से बाहर चला गया।



मै उसे अवाक होकर देखती रही, खुद से कई तरह के सवाल कर रही थी, जब भी मेरा और इनका झगड़ा होता है हम एक दूसरे को तलाक देने की धमकी देते है । शादी के दो  साल के अंदर ही हमने ना जाने कितनी बार एक दूसरे को कोसा है, एक दूसरे को अपने जीवन को बोझ समझा है और यहाँ बाबू जिसकी पत्नी उसे पहचानती तक नहीं उसे वह आत्मीय प्रेम करता है। आज मुझे खुद के क्वालिफाइड होने और मॉडर्न होने पर शर्म आ रही थी, मुझे और हमारे रिश्ते को फिर से जीने के लिए बाबू के प्रेम ने शबनम का काम किया है, उम्मीद है यह शबनम हमारे प्रेम की अटूट ज्वाला बनेगी। आज एक साधारण से व्यक्ति ने मुझे जीवन का सबसे कीमती पाठ पढ़ा दिया था……

 'आज उनसे सबसे पहले माफ़ी माँगूँगी' मन में यह निश्चय करते हुए मुझे लगा

'इस मॉडर्न जमाने में प्रेम को अब भी गंवार रहना चाहिए।' 

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गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

शायरी

 डायरी के पुराने , मुड़े कागज ने जीवन की सच्चाई बयां की
  उनके धोखे, दगाबाजी ने मोहब्बत की सच्चाई बयां की
     मत कहो ये दिल शीशे का होता है, इसलिए टूट जाता है 
असल बात यह है, कि शीशे में देखकर कोई झूठ नहीं कह पाता 
            मेरे यार के घर की ओर से आती हुई हवा ने ये पैगाम दिया है 
 उसने भुलाने की कोशिश तो बहुत की तुम्हे, पर हर एक पैतरा नाकाम हुआ है
       वो ना तो अब उसके रूप पर मरता है 
      वो ना तो अब उसके अदाओं पर मरता है  
       वो तो सिर्फ उसकी चाहत ही है की 
    वह उस बेवफा को अब भी मोहब्बत करता है 
     पर्वत श्रृंखला पर, एक पहाड़ तनहा है 
          बगीचे में एक गुलाब तनहा है 
    जरा झाँक कर देखो दुनिया की सच्चाई 
      इस दुनिया में हर एक इंसान तनहा है
    कुछ तो ताक़त जरूर होगी है याद में तभी तो, 
अनजाने लोग भी दिल पर अमिट छाप छोड़ जाते है 




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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

शायरी



हीरे की तरह चमकाने का वादा करके, 
वह तो जीवन में कोयले  बिखेर गए 

तुम्हारी दी हुए अंगूठी में लगा नगीना फीका हो सकता है, 
पर तुम्हारी याद तो इस अंत: करन में दिए की लौ की तरह जलती है 







ये आसमान से गिरती बिजलिया थोड़ा जोर तो दिखाओ,     
हमारे सनम को डराकर ही सही पर हमारे करीब तो लाओ 


दिल से कोशिश  तो बहुत की तुम्हे भुलाने की 
पर यह  कम्बक्ख्त बूंदे है जो बेवक़्त आकर तुम्हारी याद दे जाती है 

कौन कहता है कि  खुशबू सिर्फ बगीचों से ही आती है 
यहाँ तो वह पल भर भी गुजर  जाए तो भी भीनी खुशबू बिखर जाती है 



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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

Adviceadda.com - वेबसाईट समीक्षा

Adviceadda.com - एक सच्चा सलाहकार 



परिचय:



'सलाह' यह जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग जिसकी जरुरत हमे हर कदम पर पड़ती है। जैसा की कहा जाता है कि 'यह सलाह ले, एक नि: शुल्क सलाह है' 'मुफ्त सलाह हानिकारक है' अतएव मुफ्त सलाह से बचे क्योंकि ये आपको गलत मार्ग दिखा सकती है। पर जब आपको बिना एक पैसा खर्च किए विशेषज्ञ पैनल से विश्लेषित सलाह  का मौका मिले तब क्या होगा? चकित! है ना ? यहाँ पर Adviceadda.com की भूमिका आती है जहाँ आप लगभग हर सूक्ष्म और स्थूल समस्या पर सलाह प्राप्त कर सकते हैं।

'सलाह बर्फ की तरह है - जितना धीरे यह गिरेगी, उतने अच्छे से यह  आपके मन में डूबकर आपको लपेट लेगी ' यह सुनहरी पंक्तियाँ अंग्रेजी कवि, सचमुच आलोचक और दार्शनिक शमूएल टेलर कॉलरिज  द्वारा बुनी  गई है।

मेरी राय में, सलाह देना इतना आसान नहीं है। आपको निष्पक्ष होने के साथ साथ सही और गलत को ध्यान में रखना पड़ता है। इसलिए कई लोग सलाह देने से बचते है। इस मशीनी युग में जहाँ लोगों को बात करने का भी वक़्त नहीं मिलता, वहां किसी को सलाह देना एक अधूरा सपना सा लगता है।




 आपको  Adviceadda.com की जरूरत क्यों है?

मनुष्य पृथ्वी पर जटिल प्रजातियों में से एक हैं। उनकी भावनाये स्थितियों, और व्यवहार अप्रत्याशित हैं। वे एक पल के लिए खुश हो सकते हैं और अगले ही पल पर वे उदास हो सकता है। बस हमारे व्यवहार की तरह   हमारा जीवन भी अप्रत्याशित है। कई बार जीवन में हमे कई जटिल चीजों को सामना करना पड़ता है, जहाँ हमे लगता है कि आगे कोई भी  विकल्प नहीं है, जहां आपको लगता या हम कहीं फंस रहे हैं  और इसके खत्म होने की  कोई संभावना नहीं है। इस आभासी दुनिया में, हम मुट्ठी भर लोगों पर ही भरोसा कर सकते है, तो उनसे अपनी भावनाएं व्यक्त करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। 


आपकी समस्या चाहे छोटी हो लेकिन आप घुटन और असहाय महसूस कर रहे हैं, यहां तक ​​कि अपनी स्थिति के बारे में  मुट्ठी दोस्तों के साथ भी चर्चा नहीं कर सकते हैं। तो उस वक़्त की देर नहीं है जब समस्या का यह  छोटा सा  बीज अवसाद की एक घातक स्थिति बन जायेगा। मुझे नहीं लगता अवसाद को विस्तृत करने की  कोई जरुरत है, हम सभी कभी ना कभी इस समस्या से गुजर चुके है।

मानवीय भावनाओं की  इन अनकही समस्याओं को हल करना ही   Adviceadda.com की विचारधारा है। इस अद्भुत पोर्टल के संस्थापक, प्रख्यात पत्रकार विवेक सत्या मित्राम एक बेहतर समाज बनाने में विश्वास करते हैं। यह  वेबसाइट उनकी कुशल सोच का नतीजा है जहाँ आप किसी भी समस्या का अचूक और बेहतर उपाय पा सकते है।  जिससे आप अपने खुद के विचार, जीवन, और समस्याओं का गुलाम नहीं बन पायेंगे ।

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            ईमानदारी से कहूँ तो मेरे जीवन में भी कई बार ऐसी घटना हुई है  जहाँ मैंने अपने अपने आप को असहाय  पाया।  ऐसा लगा  अब  कोई उपाय नहीं है। दोस्तों को भी बताया, उन्होंने मदद की पर आखिर कितनी बार उनको अपनी समस्या बताती वह भी इंसान है, तब से मैंने मन की बात मन में रखने की ठान ली है।

मुझे इस वेबसाइट के बारे में इस स्पर्धा के दौरान ही पता चला है, आगे मुझे किसी भी सलाह की जरुरत पड़ी तो मै बेझिझक यहाँ पूछ लूँगी। यह सिर्फ वेबसाइट नहीं बल्कि ऐसे लोगो द्वारा संचालित संस्था है जो लोगो को बेहतर जिंदगी देने में विश्वास रखते है. मुझे लगता है हमे अपने दोस्तों और परिवार के लोगों को भी इस वेबसाइट के बारे में बताना चाहिए ताकि वे किसी समस्या से घिरे ना रहे और सही समय पर उलझनों के दलदल से बाहर निकल जाये  ।

Adviceadda.com को मेरी रेटिंग : ५/५ 


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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

नब्बे का दशक - एक झलक

 नब्बे का दशक 


नब्बे के दशक की बात ही कुछ और थी,
डी डी -१ ही एक सहारा था,
रंगोली, सुरभि जैसे कार्यक्रमों का बोलबाला था,

ब्लैक एंड वाइट टीवी थी 
जो अक्सर खराब रहती थी 
सीरियल के बीच में जाकर 
एंटीना ठीक करते थे



किसी एक नामचीन के घर टीवी होती थी 
शुक्रवार की फिल्मों का इंतज़ार रहता था 
गली के  बच्चे बूढ़े जुटते थे 
महाभारत और रामायण देखने के लिए 

जब कार्यक्रम के बीच न्यूज़ आता 
तो गुस्सा आता था
आहट, ज़ी हॉरर शो के लिए हम तरसते थे 
और घडी की सुइयां देखते रहते थे 

मटके की कुल्फी तो बहुत महंगी लगती थी
एक रुपया भी मुश्किल से मिलता था 
पर फिर भी बहुत कुछ आ जाता था 
पान वाला चॉकलेट, झट से घुलने वाली नल्ली :) 

लुका छिपी  कैरम, सांप - सीढ़ी और गुट्टी 
पकड़म  पकड़ाई तो पसंदीदा खेल था 
स्कूल से आते ही जिसमे जुट जाते थे 
चीटिंग तो खूब होती, पर मजा भी उतना आता था 



ना मोबाइल, ना कंप्यूटर था 
पेजर का ज़माना था
रीमिक्स इंडी- पॉप गानों का समय था 
भारत के बदलने का समय था

स्कूल ख़त्म होते ही 
वह दशक खत्म हो गया 
शायद हम भाग्यवाले  थे जो यह 
खूबसूरत समय जी सके 

आज कल तो ना गली में शोर 
ना लुका -छिपी, ना बच्चे है 
शायद वह कंप्यूटर, मोबाइल में बिजी है 
अब के बच्चे वह बच्चे ना रहे 
वह तो समय से पहले ही बड़े हो गए है 

निजीकरण ने दुनिया तो बदल दी '
साथ ही वह स्वर्णिम क्षण भी 
जिसमे हमने अपना बचपन बिताया 
वह वक़्त कभी लौटेगा नहीं 

इसलिए तो कहती हूँ 
नब्बे के दशक की बात ही कुछ और थी...........