हाथी मेरे साथी
एक गाँव था केतकी पुर। वहां रामू नाम का एक गरीब लकडहारा था उसके परिवार में चार सदस्य थे. रामू, उसकी पत्नी, बेटा सोनू, बेटी केसर। पत्नी का असमय ही निधन हो गया था. जिससे उसके घर में हमेशा शोक ही रहता है. दोनों बच्चे रामू के साथ लकड़ी बेचने के काम में साथ देते थे. एक दिन रामू जंगल से लकड़िया काट कर आ रहा था तो देखा की एक हाथी के पैरों में बेड़िया पड़ी थी. उसने उसकी बेड़िया खोल दी और हाथी अपना सूंड हिलाकर धन्यवाद करते हुआ चला गया.
एक दिन रामू ने अधिक लकड़िया काट ली पर उसे घर ना ले जा सका. साथ ही बारिश भी शुरू होने वाली थी. उसे चिंता सताने लगी की लकड़िया भीग जाएगी। उसी समय वह हाथी आया और लकड़ी के गट्ठर को उठाकर घर ले आया. अब वह रोज उसी तरह लकड़िया घर ले आया करता था. रामू को हाथी से थोड़े ही दिनों में काफी प्रेम हो गया. रामू रोजाना उसके लिए मीठे मीठे गन्ने लाता था. रामू और हाथी में काफी मित्रता हो गयी। एक दिन राजा की नजर उस हाथी पर गयी और उसने उसे शिकारियों से पकड़वा लिया जिससे रामू को ऐसा सदमा लगा की उसे लकवा मार गया. हाथी की याद में उसकी सेहत दिन ब दिन गिरती जा रही थी. एक दिन रामू ने अपने बच्चों सोनू और केसर को बुलाया और कहा की जाओ और किसी तरह उसे छुड़ाकर लाओ. दोनों ने कमर कस ली. उन्होंने राजा की प्रिय पछी कुकु को आजाद कर दिया। जिससे राजा गुस्से से लाल पीला हो गया. उसने सोनू और केसर को पकड़वा लिया। राजा ने जब इस गुस्ताखी का कारण पूछा तो सोनू ने कहा की " महाराज आपके प्रिय पछी को उड़ने पर आप इतना गुस्सा हो गए तब सोचिये कि आपने उस हाथी को पकड़वा लिया तो मेरे पिताजी को कैसा लगा होगा? " राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने हाथी को आजाद कर दिया फिर रामू का इलाज करवाया और खाने पीने का उचित प्रबन्ध कर दिया।
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