आरक्षण - देश का भक्षण
आओ तुम भी आरक्षण ले लो,
धीरे धीरे देश का भक्षण कर लो
पहले तुम अपनी जात बताओ,
फिर तुम अपना धर्म बताओ
अच्छा ! चलो अब कितना,
आरक्षण कब और कहाँ चाहिए
क्या कहा ? फिर से कहना
'शिक्षा और सरकारी नौकरी में'
अच्छा चलो अपनी योग्यता दिखाओ
अच्छा! जरुरत नहीं योग्यता की
'तुम 'जन्मजात योग्य' हो'
तो फिर बढ़िया है
अच्छा तुम गरीब हो
'नहीं तो मै सबसे सम्पन हूँ'
इसलिए तो आरक्षण के योग्य हूँ
हमे भी हिस्सा चाहिए'
किसका हिस्सा? योग्य विद्याथियों का ?
जरुरतमन्दो का?
'नहीं हमें भी आरक्षण चाहिए'
ठीक है आरक्षण मिलेगा,
पर एक शर्त है, उतने ही लोग
सेना में भर्ती होने चाहिए,
'सेना में क्यों, हम अपना हक़ मांग रहे है'
तुम्हे हक़ मिलेंगे पर जिम्मेदारी और त्याग के साथ
जब ऐसी शर्त है तो मुझे
आरक्षण नहीं चाहिए,
क्यों तुम मुकर गए हो अब
दुम दबाकर भाग गए हो अब
आरक्षण उनके लिए है
जो असहाय है, जो गरीब है जो योग्य है
नाकि एक जात में पैदा हो इसलिए
तुम्हे परमात्मा में हाथ - पैर दिए है
तुम्हे बुद्धि दी है, क्यों ना
वह बुद्धि तुम देश की सेवा
में लगाओ नाकि
देश में अराजकता फैलाओ
श्रीमान हार्दिक, कुछ पाने के
लिए मेहनत करनी पड़ती है
नाकि तुम्हारे तरह आरक्षण की भीख मांगी जाती है
तुम तो अभी अंडे से निकले चूजे हो
जिसने अभी, एक इंच भी दुनिया नहीं देखी
क्या तुम अपनी इस हीन कार्य से
कुछ हासिल करोगोे
नहीं कुछ नहीं सिर्फ देश की बर्बादी के सिवा
अगर तुम आरक्षण ख़त्म करने के
खिलाफ खड़े होते तो
शायद तुम क़ाबिले - तारीफ़ होते
पर तुम तो खुद में काफी उलझे हो
वैसे भी आरक्षण के नाम पर
तुम देश का भक्षण कर रहे हो
भारत माता के दामन को कुचल रहे हो
तुम जारी रखो अपनी पिछड़ी सोच को
शायद कुछ दिन में तुम
फिर से पाषाण युग का जीवन जियोगे
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