विश्वास.....??
भरोसे ने तोड़ी कई तक़दीरें,
एक तक़दीर मेरी भी है.
कहा था. जोड़ कर रखूँगा तुम्हे
पर ये षड़यत्र तेरी है.....
जब तुम अपना वादा ना निभा सके
तो क्यों कहा था मुझे
ना कहते तुम, ना रहते तुम
"विश्वास" भी शायद तुम्हे ही कहते है ना
मत रखो तुम नाम अनेक
बस दिल से हो जाओ नेक
तो शायद आज यूँ ना तुम्हे दोष देते
तुम्हारे ही कारण सीता ने दी अग्नि परीक्षा
रिश्तो के.…… रावण तुम हो
दी तो मैंने भी परीक्षा
पर पास ना किया तुमने मुझे
क्यों करते ? परीक्षा के सूत्रधार तुम हो ना
मै कहती हूँ कि तुम आखिर हो क्यू
प्यार का दूसरा नाम तुम हो ना
मेरे लिए नहीं …… नहीं हो तुम
प्यार की डोर ……
एक कच्चा धागा हो तुम जो
टूट जाते हो, रिश्ते बिखेर जाते हो
जीवन अंधेर बना जाते हो
तक़दीरें बदल जाते हो .......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें