सुनहरी धूल
हुई सुबह, आँखे मसली, आया नया सवेरा
गाँव देखने मैं चली जब मिला वक़्त सुनहरा
चिड़िया चहकी, सूरज चमका, दमका दिया कोना कोना
सुंदर जहान, सुंदर आसमान, दिन जैसे सोना
हवा चली, इठलाई बलखाई, फसले शरमाई
आगे बढ़ कर झूम गई सारी अमराई
बढ़ती गई..... झूमती गई
संग पकड़कर धूल की कलाई
धूल से बचती ,आँखे भीचे, खड़ी हो गई मैं
कोसने लगी धूल को, जो मुझे परेशां कर रही थी
तब ना जाने कब, हवा कान में धीरे से कुछ कह गई
धूल से बचना, धूप से बचना, पर यह तो है "सुनहरी धूल"
वह धूल, जो मिट्टी है, जो माता है
जिसके गोद में यह फसले बढ़ती है
जो सूरज के किरणो तक पहुचती है
सुनहरी किरणो की दाता है यह "सुनहरी धूल"
सोने सी चमकती, दमकती इधर उधर भटकती
हवा की साथी, जब छू जाती किसी कृषक को
तब बन जाती है यह धूल … सोने सी कीमती "सुनहरी धूल"
सुन कर यह.. नतमस्तक हो गई मै
आखिर बाँहों में बटोरनी थी.… "सुनहरी धूल"
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