सोमवार, 27 जुलाई 2015

वह य़ाद जो, सिर्फ य़ादों मे बस जाए ...


अनकही याद 


क्या थी वह तमन्ना तुम्हे पाने की,
जीवन की सारी खुशियां तुमपर लुटाने की 
एक पल भी आपका दीदार हो जाये तो, 
लगता था कि खुदा  से रूबरू हो गए है हम 

आपकी एक झलक भी काफी कीमती हुआ करती थी 
जब भी आँखों से ओझल होते तो 
लगता था, दिल का चिराग ही बुझ गया है 
उड़ते हुए धूल में, आपकी छवि को ढूंढ़ते थे 



आपकी आखिरी सूरत को, दिल में संजो कर  रखते थे
उसे रोज याद करते थे, डर था 
 कि कही वह सूरत बदल ना जाये 
डर था कि कही आप हमे भुला ना  जाये 

जब भी सालों बाद आपको देखते तो 
बरखा की बूंदों की तरह 
आँखे झरझरा उठती थी 
फिर भी उसे पोंछ लेते ताकि आपको जी भर देख सके 

ना कह पाते, कुछ 
 अधरों तक बाते आकर रुक जाती थी 
 मुस्कुरा उठते थे बस 
इतनी सी ही बात हो पाती थी 

जी करता है, कभी- कभी 
ईश्वर से वह पल उधार मांग ले 
जी करता है आपको 
भगवान से  मांग ले 

रोकना चाहे आंसू पर आज थम ना सके 
आपको ढूँढना चाहा पर आप मिल ना सके 
आज शायद आपकी याद 
वर्तमान पर भारी पड़ गई 

आपकी याद रोक पाते 
दिल को समझाते इतनी हिम्मत ना हो सकी.... 











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