शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

शांती ही, विश्व का अस्तित्व बचा सकता है ....


तबाही 


भारत की यह भूमि
क्यों लहू से सन गई है, आज
एक दूसरे के खून का प्यासा
क्यों हो गया है इंसान आज

बम ब्लास्ट, ए - के - 47
बन गए है, शांति के नए औजार 
धर्म - जात के नाम पर ठगते है 
नाम खुदा का बदनाम करते है



शर्म आती है, जब मै यह सोचती हूँ 
यही वह धरती है, जहाँ पर जन्म लेकर 
मातृभूमि से गद्दारी करते है यह 
दुश्मनो की फ़ौज में जाकर 
खुद के घर में सेंध लगाते है यह 

क्या यह नहीं सोचते,
बंदूक से निकली गोली 
जात - धर्म नहीं पूछती 
नहीं पूछती वह तुम गुनहगार हो या नहीं

क्या अल्लाह ने , ईश्वर ने 
मांगी है यह क़ुरबानी 
या फिर अपना उल्लू सीधा करने को 
लेतो हो तुम जान हमारी 

बच्चो, युवाओं को भड़काते हो 
जन्नत की हूरो का ख्वाब दिखाकर 
इंसानियत का क़त्ल करके 
धरा को जीते जी नर्क बनाते हो 

क्या जान ले ले से 
खुदा खुश  होता है ? 
क्या बंदिशे लगाने से 
खुदा का दीदार होता है ? 

अगर ऐसा होता हो , तो 
मुझे प्रत्यक्ष दिखलाओ , 
साबित करो कि , गीता, कुरान, बाइबिल 
धर्म ग्रन्थ नहीं, साजिश रचने की पुस्तके है 

अभी भी समय है, 
रोक दो, ये तबाही 
मत अलग करो 
तुम अपने इलाही 

नहीं तो देर नहीं है 
जब फिर से पाषाण युग 
का जीवन जियोगे 
अपनी गलती पर पछताओगे 
अपनी गलती पर पछताओगे................ 











सोमवार, 27 जुलाई 2015

वह य़ाद जो, सिर्फ य़ादों मे बस जाए ...


अनकही याद 


क्या थी वह तमन्ना तुम्हे पाने की,
जीवन की सारी खुशियां तुमपर लुटाने की 
एक पल भी आपका दीदार हो जाये तो, 
लगता था कि खुदा  से रूबरू हो गए है हम 

आपकी एक झलक भी काफी कीमती हुआ करती थी 
जब भी आँखों से ओझल होते तो 
लगता था, दिल का चिराग ही बुझ गया है 
उड़ते हुए धूल में, आपकी छवि को ढूंढ़ते थे 



आपकी आखिरी सूरत को, दिल में संजो कर  रखते थे
उसे रोज याद करते थे, डर था 
 कि कही वह सूरत बदल ना जाये 
डर था कि कही आप हमे भुला ना  जाये 

जब भी सालों बाद आपको देखते तो 
बरखा की बूंदों की तरह 
आँखे झरझरा उठती थी 
फिर भी उसे पोंछ लेते ताकि आपको जी भर देख सके 

ना कह पाते, कुछ 
 अधरों तक बाते आकर रुक जाती थी 
 मुस्कुरा उठते थे बस 
इतनी सी ही बात हो पाती थी 

जी करता है, कभी- कभी 
ईश्वर से वह पल उधार मांग ले 
जी करता है आपको 
भगवान से  मांग ले 

रोकना चाहे आंसू पर आज थम ना सके 
आपको ढूँढना चाहा पर आप मिल ना सके 
आज शायद आपकी याद 
वर्तमान पर भारी पड़ गई 

आपकी याद रोक पाते 
दिल को समझाते इतनी हिम्मत ना हो सकी.... 











गुरुवार, 16 जुलाई 2015

उत्तर भारतीय मजाक नही .....

गर्व है मै 'भैया' हूँ 



'भैया' जिसका एक अर्थ होता है, 'भ्राता' 'भाई' या अंग्रेजी में कहे तो 'Brother'. पर समय के अनुसार भाषा लिपि में परिवर्तन होता रहता है. तो आज कल 'भैया' शब्द का उपयोग उत्तर भारतीय लोगो का मजाक उड़ाने में किया जाता है.  या फिर कोई अगर कोई काम ढंग से ना करे तो उसे 'भैया' कह दिया जाता है.

चार दिन पहले दफ्तर में एक कर्मचारी, जो की नयी परिभाषा के आधार पर जात से 'भैया' था उसने कोई कागज़ पढ़ी लिखी नॉन - भैया के हाथ में थमाया जो की थोड़ा मुड़ गया था. उसके जाते ही उस नॉन भैया ने तपाक से बोला  ''कागज की  हालत तो देखो, भैया है ना.'' उसे लगा मैंने सुना नही है........ यह कोई पहला वाकया नही है जहाँ मैंने सुना हो, 'भैया' है ना.

यह लेख मैं उन सभी नॉन- 'भैया' को समर्पित करती हूँ जो यह सोचते है, कि 'भैया' लोग एकदम 'भैया'  होते है.



कई लोगो को यह  तकलीफ है, कि 'भैया' लोग हर जगह पहुंचे रहते है तो उनको मै यह बता दूँ भारत के संविधान में हर किसी को भारत के हर राज्य में जाकर अपनी रोजी- रोटी कमाने का हक़ है. 'भैया' लोग काम से नहीं डरते है. क्या आप  जानते है कि अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए वह अपने घर से  दूर  आते है. मेहनत करते है, पानी पूरी का ठेला लगाते है, सब्जी बेचते है, वॉचमन का काम करते है. टैक्सी चलाते है.

 अब आप यह सोचेंगे इसमें कौनसी  बात है, कौन सा ये लोग टाटा - बिरला बन गए है. नहीं हर कोई टाटा - बिरला  नहीं बन सकता।  कम से कम 'भैया' लोग  मेहनत की तो खाते है.

क्या आपको पता है?  घर - घर पढ़ी जाने वाला रामचरित मानस 'अवधी' भाषा में लिखा गया है. जो की 'भैया' लोगो की भाषा है. राम - कृष्णा का जन्म उत्तर भारत की पवित्र भूमि पर हुआ था.

क्या आपको पता है? हिंदी (जो हमारी राष्ट्रभाषा है)  के सबसे ज्यादा लेखक प्रेमचन्द्र, हरिवंशराय बच्चन, राजेंद्र यादव  उत्तर प्रदेश के है.

अमिताभ बच्चन, सदी के महा नायक  उत्तरप्रदेश के है. भारत की पवित्र गंगा, पहला अजूबा ताजमहल उत्तरप्रदेश में है.  गेहूं का सबसे ज्यादा उत्पादन उत्तरप्रदेश  में होता है.

हमारी भाषा मजाक उड़ाने के लिए नहीं है........... हिंदी के कई शब्द अवधी से लिए गए है.

अतः जो भी यह पढ़ रहे है, उनसे मै एक निवेदन चाहूंगी कि,  'भैया'  शब्द का उपयोग सिर्फ भाई - बहन के रिश्ते के लिए छोड़ दे.  'भैया' लोग भोजपुरी भाषा  बोलते है नाकि 'भैया' भाषा।





क्या होता है, जब पुराने कागज मिल जाते है......


मुलाकात


आज कुछ मुलाकात हो गयी 
पुराने कागजात में 
चंद मुस्काने मिल गयी 
पुराने कागजात मे

वह अखबार का  पन्ना
जो काफी सहेज कर रखा था
आज पंद्रह साल बाद भी
वह  छपी कविता दिल को छू गई



वह डायरी का पन्ना जो
अब पीला पड़ चुका है
उसपर लिखी बातें
हौले से सहला गई

वह कुछ सर्टिफिकेट
जो जीते थे स्पर्धा में
आज सामने आते ही
वह तालियों की गड़गड़ाहट कानों में गूंज गई

वह गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ
अभी भी खुश्बू समेटे है
शायद कुछ यादों की
कुछ वापस ना आने वाली जज्बातों की

कुछेक पन्नो पर, बहती नदी,
घर, पहाड़ के चित्र थे
रंग फीके पड़  गए थे
पर वह फिर भी इस बेरंग दुनिया से अच्छे थे

अच्छा हुआ इन पीले पड़े कागजो से
मुलाकात हो गई
कम- स -कम दो क्षण ही सही
होंठो की मुस्कराहट से मुलाकात हो गई








शुक्रवार, 12 जून 2015

समुंदर, अशांत मन की दवा ………


समुंदर


समुंदर, तुझे देखती हूँ 
तो बहुत प्यार आता है
आखिर दिल की अनकही बाते 
तुझसे ही तो साझा कर पाती हूँ 

तू ही तो एक है जो 
मझे सुनता है, मुझे समझता है 
मुझे बताता है, साथ निभाता है 
दर्द-ए -दिल की दवा है तू 

अपने लहरो को,  मेरे पैरो से छूकर 
मुझे शांत कराता है. 
मोती जैसी बूंदो को उड़ाकर 
जागृत करता है 




अथाह फैला है तू पर फिर भी 
कितना शांत है, 
कितना भोला है 
कितनो को पनाह दी है 

तेरी मदमस्त लहरों को 
देख कर दिल का तूफान शांत हो जाता है
इक तू ही तो है, जिसके साथ 
मै खुद को ढूंढ पाती हूँ 

इक तेरे आगोश में ही 
खुद को महफूज पाती हू 
क्यों है इतनी दिल्लगी तुमसे 
मै समझ नही पाती हू 

इस जीवित समाज को छोड़ कर 
खुद को ढूंढने, रोने तेरे पास आती हू 
तेरे रेतीले वस्त्र को 
अश्रु  से भीगा जाती हू 

तू मेरे रोने का कंधा है, 
इस जीवित समाज से तो 
तू लाख गुना अच्छा है 
जो सिर्फ रुलाना जानती है 
क्यूँ वो तुझसे कुछ नहीं सीखता 

मुझपर लुटाई तेरी हर  'बूँद' 
मुझे दिया गया तेरा हर समय 
मुझपर एक एहसान है
एक सच्चे दोस्त की पहचान है

आखिर दिल की अनकही बाते 
                     तुझसे ही तो साझा कर पाती हूँ.…………… 













स्कूल की यादों को उकेरती कविता

जून का वो महीना


बहुत याद आता  है 
जून का वो महीना
स्कूल की यादो को उकेरता है 
जून का महीना 
वह स्कूल, वह जगह 
वह बेंच, वह दोस्त 

'एक क्लास और आगे बढ़ गए'
लगता था जैसे बहुत बड़े हो गए 
पहले दिन जल्दी जाना 
सबसे अच्छी बेंच पकड़ना
बहुत याद आता  है 
जून का वो महीना



नई किताबे, नई  पेन 
नई चप्पले, नया बैग 
कितना आनंद छुपा था 
उस बुक शॉप की भाग दौड़ में 
''अंकल, वह परी वाला स्टीकर देना 
वह कवर का पूरा बंडल देना,
ये वाला नही वो अलादीन वाला कंपास देना''
दूसरे दिन दोस्तों को दिखाना 
'मेरा वाला पेन तेरे पेन से ज्यादा अच्छा है
तेरा स्टीकर इतना अच्छा नही है मेरा वाला देख'
बहुत याद आता  है 
जून का वो महीना
जब भी बारिश की पहली बूँद पड़ती है,
कभी न मिटने वाली ये यादें 
चक्षु पटल पर अंकित हो जाती है 
डबडबाई आँखों से वर्षा बूँद की तरह 
धुंधलाकार मिटा जाती है 

देखते देखते ही न जाने कब 
इतने जून बीत गए कि 
अब वो यादें बन गई 
कैसे  समझाऊ खुद को 
ना आयेंगे वो दिन 
ना आयेंगे वो पल

दुनिया की भेड़चाल में 
खो गयी है सारी मासूमियत 
यंत्रचालित सी जिंदगी ने 
छीन ली है सारी इंसानियत 
क्या पता था तब हमे 
ये ही जीवन के सबसे हंसी दिन है 
आज जब पता चला तो कभी ना लौट पाने का गम है 

हे ईश्वर अगर लौटाते हो 
बीता हुआ कल 
तो मुझे लौटा दो, सिर्फ एक पल 
जून का वो महीना 
            जून का वो महीना ........... 

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014



सोचा था.……  


सोचा था, तुम्हे देखते ही 
शायद तुम ही हो मेरे जीवन खिवैया 
सोचा था, तुम्हे जानते ही 
 शायद तुम ही हो मेरे जीवन की नैया 

सोचा था, तुम दोगे साथ मेरा 
सोचा था, तुम रहोगे साथ हमेशा 
सोचा था, जीवन धन्य हो गया तुम्हे पाकर 
सोचा था, पवित्र हो गई तुम्हे छूकर 


सोचा था, लड़खड़ाते राह पर सहारा बनोगे 
सोचा था, बहती धारा में पतवार बनोगे 
सोचा था, हर तूफान में इशारा बनोगे 
सोचा था, अँधेरे में उजाला बनोगे 

सोचा था, तुम ही सपनो के राजकुमार 
सोचा था, तुम ही हो मेरे दारोमदार 
सोचा था, साथ रहेंगे हमेशा 
सोचा था, प्यार सदा रहेगा ऐसा 

ख्वाब में गुम  होते होते ना जाने कब हकीकत में आ गई,
वही दिन, समय, जीवन है,
वही रात, चाँद, सूरज है ,
पर वो जो नहीं 
वो तो सिर्फ तुम ....... हो सिर्फ तुम हो 

ना सोचा था, होगा कभी ऐसा भी 
पलक झपकते ही 'जीवित अश्रु' डायरी के पन्नो पर पड़ गई 
वही दर्द, घाव को ताजा कर गई
अतीत के पन्ने हवा में उड़े  
और कलम रखते ही हाथ लड़खड़ा उठे.